Sunday 8 January 2017

उम्मेद भवन पैलेस : राजसी सत्ता और उदारता का भव्य प्रतीक

उम्मेद भवन पैलेस को तत्कालीन महाराजा उम्मेद सिंह ने बनवाया था। स् न 1929 भवन का निर्माण कार्य आरंभ हुआ और स् न 1943 मैं भवन बन कर तैयार हो गया।

वैसे राजपुताना में कई राजाओं ने अपने  वैभव को प्रदर्शित करने के लिए दुर्गों आदि का निर्माण करवाया परन्तु उम्मेद भवन अपने आप में एक गौरव गाथा लिए हुए है ।
असल में  उस समय (1920) राजपुताना 3 साल के भीषण काल से जूझ रहा था। हर तरफ भुखमरी और गरीबी , तब महाराजा उम्मीद ने भवन निर्माण का प्रस्ताव रखा जिससे हजारों लोगो को रोजगार मिले । उम्मेद भवन ने तब लगभग 2000 से 3000 लोगो को रोजगार दिया था । भवन ने अपने निर्माण के समय कई गरीब परिवारों और खास कर किसानों का जीवन बचाया। ऐसे न्याय प्रिय शासन का गवाह बना है ये भवन।

उम्मीद भवन  न केवल प्रजा हित में किए फैसले का गवाह है अपितु राजपूती शान का भी प्रतीक है। पैलेस लगभग 26  एकड़ अर्थात 11 हैक्टेर  में फैला  विशाल भवन है। जिसमे 347 कक्ष है जो राष्ट्पति भवन के 340 कक्षों से भी अधिक है।
महल को बनाने के लिए  मकराने और सैंडस्टोन के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था। एक रोचक बात यह है कि पहले भवन का नाम छित्तर पैलेस था जो की इसके निर्माण में इस्तेमाल होने वाले पत्थर छित्तर के नाम पर पड़ा था। भवन निर्माण हेतु पत्थर लेन के लिए रेलवे लाइन तक  बिछा दी थी।
राजा उम्मेद सिंह 37 वे राजा थे। उम्मेद भवन पैलेस   तैयार होने के बाद वे केवल 4 साल तक इसका भोग कर सके और स् न 1947 में उनका देहांत हो गया। उनके बाद  राजगदी पर उनके बेटे हनुमंत सिंह बैठे , उनकी मृत्यू एक प्लेन क्रैश में हो गयी तब गज सिंह का अभिषेक हुआ।

स् न 1971 में गज सिंह  ने भवन के एक भाग को होटल में  तब्दील करवा दिया।
अब यह भाव तीन भागों में विभाजित है
पहला भाग  म्यूजियम
दूसरा भाग होटल
एवं तीसरा भाग शाही परिवार का निवास है।

कुछ रोचक तथ्य:
पैलेस निर्माण के दौरान किसी भी प्रकार के चुने या किसी बंधने वाली वस्तु का इस्तेमाल नही किया गया  इसे केवल पत्थर के ऊपर पत्थर रख कर बनाया है।
महल को राजस्थान का ताजमहल कहा जाता है।
इसे बंनाने और अकाल पीड़ितों की मदद करने का महाराजा उम्मेद सिंह को ख्वाब आया था।
कहा यह भी जाता है कि एक साधु ने ऐसी भाविष्य वाणी की थी की अकाल के बाद राजपूती शासन ख़तम हो जायेगा पता नही इसमे कितनी सच्चाई है परंतु अकाल के बाद देश आजाद हो गया और राजपूती शासन का भी अंत हो गया।

Wednesday 4 January 2017

भील जाति

Hi.......
Today I was thinking about our culture and our beautiful mother tongue so I have decided that I'll write this blog in hindi .

भील और विल और विल्लु का अर्थ है तीर कमान रखने वाली जनजाति ।
भील जाति मूलतः तीर चलने मे माहिर होती है , इसीलिए कई  राजपूत इन्हे अपने यहाँ तीरंदाज रखा करते थे । महाराणा प्रताप जब मुगलों से छिपते फिर रहे थे तब उन्होंने इन्ही भीलों की शरण ली थी । एवं इसी जाति की सहायता से कई बार मुगलों पर आक्रमण किया था । और अपना साम्राज्य वापस प्राप्त किया था । गडरिया भील आज भी अपने को राणा प्रताप के वंशज बताते है।

भील एक प्रकार की घुमक्कड़ जाति है  जो शिकार कर या कृषि क्र के अपना जीवन व्यतीत करती है ,परंतु इतिहास  मे ऐसे कई उलेख  मिलते है जिसमे भीलों के राज करने का वर्णन है । उदाहरण के तौर पर कोटा का नाम कोटिया भील के नाम से है एवम डूंगरपुर  – डुंगरिया भील और बंसरा बंसरिया भील के नाम से पड़ा है ।

भील जाति पराक्रमी और स्वामिभक्त होती है , आज भीलों का इतिहासः भले ही ठंडा पड़ गया हो परंतु इस जाति  के पराक्रम और स्वामिभक्ति की कथाऐं आज भी स्वर्ण अक्षरों में लिखी मिलती है। इतिहास मै जिस वीर शिष्य एकलव्य का जिक्र है , जिसने गुरु दक्षिणा मै अपना अंगूठा काट कर गुरु द्रोण को अर्पित कर दिया था वो महान शिष्य भील जाति का था । इसी  एकलव्य को मारने के लिया श्री कृष्ण को छल करना पड़ा था । मत यह भी है कि इसी घटना का बदला लेने के लिए श्री कृष्ण का वध एक भील द्वारा किया गया जो की पूर्व जनम में  बालि था।
माता शबरी जिसके झुटे बेर भगवान् राम ने ग्रहण किये थे वो एक भील कन्या थी। श्री राम सीता की खोज में भटकते हुए जब दण्डक वन में गये तब वहां शबरी उनका इंतजार कर रही थी।

भील जाति  पराक्रमी ही नही कला प्रेमी भी होती है । कई प्रकार के नृत्य जो राजपुताना(राजस्थान) में प्रशिद्ध है जैसे गेर , घुमर  आदि भीलों द्वारा किये जाते है ।  यही नही भील अपने घरों की दीवारों पर विशेष चित्र बनाते हैं जिन्हें मांडना कहा जाता है। ये चित्र  विश्वविख्यात है । जिनकी कई देशों में मांग की जाती और केनवास या कपडे पर बनाकर इन चित्रों को बेचा जाता है।

भील जाति के कुछ विशेष तथ्य :
भील जाति के कुलदेवता टोटम देव है।
भील केशरीनाथ के चढ़ि केसर का पानी पीकर कभी झूट नही बोलते।
भगवान् शिव ने एक बार माता पार्वती को भीलन  बनाने का श्राप दे दिया था और बाद में उन्हें वापस कैलाश लेन के लिए खुद भील रूप में अवतारित हुए थे।
भील पाबूजी की फड़ वचन करते है, जिसमे भील रावण हथा बजाता है एवं गाता है और उसकी पत्नी(भीलन) छड़ी या आग(आरती) से उस दृश्य पर प्रकाश डालती है जिसके विषय में भील गा रा होता है।
रावण हथा भीलों का वाद्य यंत्र है। कई भील गा बजा कर आज अपना गुजारा करते है।

इतना स्वर्णिम इतिहासः होने के बावजूद आज ये जाति टोकरे खाने को मजबूर है , और आज इनकी संस्कृति विलुप्त होती जा रही है।  जिन्होंने कई महत्वपूर्ण  युद्धों का रुख बदल दिया उन्हें न तो  इतिहास में कोई विशेष जगह मिली न हे वर्तमान में उनके बलिदान को समान ।
पर धन्य है ये बंजारे जिन्होंने अपनी संस्कृति को बचा के रख है और अपनी युवा पीढ़ी को दे रहे है।

भीलों के संगीत प्रेम को और समझने के लिए youtube पर इस वीडियो को जरूर देखें
Link:
https://plus.google.com/111783699450267498936/posts/irgCGYdCXPX

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