उम्मेद भवन पैलेस को तत्कालीन महाराजा उम्मेद सिंह ने बनवाया था। स् न 1929 भवन का निर्माण कार्य आरंभ हुआ और स् न 1943 मैं भवन बन कर तैयार हो गया।
वैसे राजपुताना में कई राजाओं ने अपने वैभव को प्रदर्शित करने के लिए दुर्गों आदि का निर्माण करवाया परन्तु उम्मेद भवन अपने आप में एक गौरव गाथा लिए हुए है ।
असल में उस समय (1920) राजपुताना 3 साल के भीषण काल से जूझ रहा था। हर तरफ भुखमरी और गरीबी , तब महाराजा उम्मीद ने भवन निर्माण का प्रस्ताव रखा जिससे हजारों लोगो को रोजगार मिले । उम्मेद भवन ने तब लगभग 2000 से 3000 लोगो को रोजगार दिया था । भवन ने अपने निर्माण के समय कई गरीब परिवारों और खास कर किसानों का जीवन बचाया। ऐसे न्याय प्रिय शासन का गवाह बना है ये भवन।
उम्मीद भवन न केवल प्रजा हित में किए फैसले का गवाह है अपितु राजपूती शान का भी प्रतीक है। पैलेस लगभग 26 एकड़ अर्थात 11 हैक्टेर में फैला विशाल भवन है। जिसमे 347 कक्ष है जो राष्ट्पति भवन के 340 कक्षों से भी अधिक है।
महल को बनाने के लिए मकराने और सैंडस्टोन के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था। एक रोचक बात यह है कि पहले भवन का नाम छित्तर पैलेस था जो की इसके निर्माण में इस्तेमाल होने वाले पत्थर छित्तर के नाम पर पड़ा था। भवन निर्माण हेतु पत्थर लेन के लिए रेलवे लाइन तक बिछा दी थी।
राजा उम्मेद सिंह 37 वे राजा थे। उम्मेद भवन पैलेस तैयार होने के बाद वे केवल 4 साल तक इसका भोग कर सके और स् न 1947 में उनका देहांत हो गया। उनके बाद राजगदी पर उनके बेटे हनुमंत सिंह बैठे , उनकी मृत्यू एक प्लेन क्रैश में हो गयी तब गज सिंह का अभिषेक हुआ।
स् न 1971 में गज सिंह ने भवन के एक भाग को होटल में तब्दील करवा दिया।
अब यह भाव तीन भागों में विभाजित है
पहला भाग म्यूजियम
दूसरा भाग होटल
एवं तीसरा भाग शाही परिवार का निवास है।
कुछ रोचक तथ्य:
पैलेस निर्माण के दौरान किसी भी प्रकार के चुने या किसी बंधने वाली वस्तु का इस्तेमाल नही किया गया इसे केवल पत्थर के ऊपर पत्थर रख कर बनाया है।
महल को राजस्थान का ताजमहल कहा जाता है।
इसे बंनाने और अकाल पीड़ितों की मदद करने का महाराजा उम्मेद सिंह को ख्वाब आया था।
कहा यह भी जाता है कि एक साधु ने ऐसी भाविष्य वाणी की थी की अकाल के बाद राजपूती शासन ख़तम हो जायेगा पता नही इसमे कितनी सच्चाई है परंतु अकाल के बाद देश आजाद हो गया और राजपूती शासन का भी अंत हो गया।